उत्तरी कोलकाता की गलियों में पूर्णिमा कोठारी का घर है। वह राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अयोध्या जाने की तैयारी करने में व्यस्त हैं। उसका उत्साह देखते ही बनता है। आखिरकार उनका 33 साल का लंबा इंतजार पूरा जो होने जा रहा है। उनके दो बड़े भाई 23 साल के राम कोठारी और 20 साल के शरद कोठारी ने इस मंदिर की स्थापना के लिए अपना खून बहाया था। दरअसल, 1990 के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान कारसेवकों पर पुलिस ने गोलीबारी की थी। इसमें कोठारी बंधुओं सहित 10 लोगों की जान चली गई थी। इसके लिए तत्कालीन सपा सरकार जिम्मेदार थी
कारसेवकों के पहले जत्थे में शामिल थे दोनों भाई
आज, जबकि पूरा देश 22 जनवरी का इंतजार कर रहा है। उस दिन का जब राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा अयोध्या में होने जा रही है। पूर्णिमा कोठारी भावनाओं में बह गईं। कोठारी बंधुओं ने 30 अक्टूबर 1990 को कारसेवकों के पहले जत्थे के सदस्य के रूप में अयोध्या में कारसेवा में भाग लिया था। दो दिन बाद 2 नवंबर को पुलिस कार्रवाई में उन दोनों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी
माता-पिता को गर्व होगा कि बेकार नहीं गया बलिदान
तब से कोठारी बंधुओं की छोटी बहन पूर्णिमा अपने बीमार माता-पिता के साथ लगातार संघर्षपूर्ण जीवन बिता रही हैं। वह कहती हैं कि उन्हें इस बात पर गर्व होगा कि उनके बेटों का सर्वोच्च बलिदान व्यर्थ नहीं गया। आजतक से बात करते हुए पूर्णिमा ने बताया कि कैसे उनके भाई बचपन से ही आरएसएस की विचारधारा और जिस धार्मिक माहौल में वे बड़े हुए थे, उससे जुड़े रहे थे
कार सेवा के लिए बेटों के भेजने में नहीं लगा डर- पूर्णिमा
पूर्णिमा को याद है कि पुलिस कार्रवाई की आशंका के बावजूद, उसके माता-पिता अपने बेटों को कारसेवा के लिए भेजने से नहीं डरे थे। मां ने कहा था कि अपने बेटे को खोने के बावजूद उन्हें अपने कृत्य पर पछतावा नहीं है क्योंकि उन्होंने नेक काम के बलिदान दिया था।
सपा को नहीं दिया जाना चाहिए न्योता- पूर्णिमा
ऐसे समय में जब राम मंदिर ट्रस्ट मंदिर के उद्घाटन समारोह के लिए सभी राजनीतिक दलों को निमंत्रण भेज रहा है। पूर्णिमा का कहना है कि वह नहीं चाहतीं कि समाजवादी पार्टी को औपचारिक रूप से आमंत्रित किया जाना चाहिए। दरअसल, सपा शासन के दौरान उनके भाई पुलिस गोलीबारी में मारे गए थे