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Story of elections - Two candidates were like this, when they stood, there was tremendous pressure to sit

बीकानेर। चुनावी रणभेरी बजने के साथ ही राजनीतिक योद्धा सक्रिय हो जाते हैं। अव्वल तो उनकी कोशिश राष्ट्रीय कद की राजनीतिक पार्टियों का टिकट हासिल करने की होती है। उसमें नाकाम होने पर कई निर्दलीय ताल ठोंक देते हैं। कई ऐसे भी होते हैं, जो स्थानीय अथवा क्षेत्रीय स्तर पर बने किसी प्रभावशाली मंच या पार्टी का दामन थाम कर चुनाव मैदान में उतर पड़ते हैं। जाहिर है, ऐसे उम्मीदवारों के पीछे मतदाताओं का एक कुनबा भी होता है।

लिहाजा, ऐसे प्रभावशाली उम्मीदवार राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों के लिए सिरदर्द साबित होते हैं। फलत: राजनीतिक पार्टियां ऐसे दावेदारों को बैठाने के लिए पूरा जतन करती हैं। बीकानेर में भी यूं तो चुनाव में खड़े होने और बैठने के तमाम वाकये इतिहास में दर्ज हो चुके हैं, लेकिन कुछ ऐसे किस्से भी रहे, जो आज भी लोगों की जुबां पर आ ही जाते हैं।

बात हो रही है साल 2003 के विधानसभा चुनाव की। इन चुनावों में बसपा से डॉ. अजीज अहमद सुलेमानी को टिकट मिला था। वहीं दूसरी ओर, नवगठित सामाजिक न्याय मंच से सुनील बांठिया चुनाव मैदान में थे। डॉ. सुलेमानी का सभी समाजों में प्रभाव था। शहर का हर शख्स उन्हें जानता-पहचानता था। लोगों की उन तक और उनकी लोगों तक सहज पहुंच थी। साथ ही पदमश्री मांड गायिका स्वर कोकिला अल्लाह जिलाई बाई के दोहिता होने का फायदा भी उन्हें मिल रहा था। टिकट घोषित होने के साथ ही डॉ. सुलेमानी को शहरी क्षेत्र में मजबूत प्रत्याशी माना जाने लगा। दूसरी ओर, व्यवसायी सुनील बांठिया भी भाजपा से दो बार पार्षद चुने जा चुके थे और राजनीति में सक्रिय शख्सीयत थे। सन 2003 में सामाजिक न्याय मंच से बांठिया को बीकानेर पश्चिमी क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया गया। उन्होंने जनसंपर्क करना भी शुरू कर दिया और नामांकन पत्र भरने की तैयारी कर ली थी। स्वागत कार्यक्रम होने लगे।

डॉ. सुलेमानी और बांठियां को लेकर जो एक बात समान थी, वह यह थी कि दोनों ही प्रत्याशियों के खड़े होने से राष्ट्रीय पार्टियां असहज थीं।

लिहाजा उन दलों के बड़े-छोटे नेताओं का दबाव पड़ने लगा कि दोनों चुनाव मैदान से हट जाएं। डॉ. सुलेमानी पर तो इतना प्रेशर पड़ा कि वे बिना आलाकमान को सूचित किए ही चुनाव मैदान से हट गए। जबकि बांठिया अपने नेता के आदेश का इंतजार करते रहे। बाद में जब बांठिया के पास उनके नेता का फैक्स आया, तो उन्होंने भी अपना नाम वापस ले लिया था।

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