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चुनावी मौसम हो और भाषणों की बात न हो, ऐसा भला हो सकता है क्या। भाषण भी ऐसे, जो बरसों-बरस लोगों के जेहन में स्थाई जगह बना चुके हों। राजस्थान में यूं तो अनेक नाम हैं, जिनकी वाणी का ओज लोगों में उत्साह भी भरता था और गुदगुदाता भी था। मुरलीधर व्यास ऐसे ही वक्ता थे। इसके बाद अगर किसी की चर्चा होती है, तो वे नंदू महाराज हैं। इनके भाषणों को लेकर भी लोगों में बेहद क्रेज था। हालांकि, नंदू महाराज के साथ इसी से जुड़ा एक रोचक किस्सा भी है, जो उन्हें स्वाभाविक वक्ता साबित करने का शायद सबसे पहला अवसर था।

बात विधानसभा चुनाव 1993 की है। भाजपा ने नंदू महाराज को बीकानेर शहर सीट से प्रत्याशी बनाया। उनका यह पहला चुनाव था। उनके सामने कांग्रेस के गढ़ को भेदने की चुनौती थी। नंदू महाराज का यह पहला चुनाव भी था। उन्हें सार्वजनिक मंच पर बोलने का ज्यादा अभ्यास भी नहीं था। यूं तो उनके पक्ष में प्रचार के लिए भाजपा के तत्कालीन वरिष्ठ और तेजतर्रार नेता प्रमोद महाजन भी बीकानेर आए। महाजन की सभा को लेकर लोगों में पहले से क्रेज था। सभा वाले दिन नंदू महाराज के बोलने का अवसर नजदीक था। उनके लिए एक भाषण लिखकर तैयार किया गया। नंदू महाराज ने कई बार अभ्यास भी किया। हालांकि, वे हिन्दी के कई शब्दों पर अटक रहे थे। बहरहाल, पुरानी जेल रोड पर सभा का मंच सजा। इस सभा में केवल दो ही लोगों के भाषण होने थे। एक प्रमोद महाजन का और दूसरा नंदू महाराज का। सभा शुरू हुई। नंदू महाराज खड़े हुए। पर यह क्या…। वह भाषण को पढ़ने में असहज दिखने लगे। यह देख उनके पास मौजूद समर्थक भवानीशंकर सोलंकी ने नंदू महाराज को लिखा भाषण छोड़ अपने अंदाज में बोलने का सुझाव दिया। बस फिर क्या था। नंदू महाराज ने जो बोलना शुरू किया, तो बस…। भाषण ऐसा जोरदार रहा कि महाराज छा गए। संयोग यह भी रहा कि वह बाद में चुनाव भी जीत गए।

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