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बीकानेर, 08 दिसम्बर। 4-9 दिसम्बर तक मनाए जा रहे ‘लैंगिक उत्पीड़न मुक्त कार्यस्थल सप्ताह’ के तहत शुक्रवार को राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी) में जागरूकता कार्यशाला का आयोजन किया गया। जागरूकता कार्यशाला के प्रारम्भिक सत्र में एनआरसीसी की महिला प्रकोष्ठ अध्यक्ष वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. बसंती ज्योत्सना ने आयोजित कार्यशाला के महत्व एवं उद्देश्य पर विस्तृत रूप में प्रकाश डाला।

इस अवसर पर केन्द्र निदेशक एवं कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ. आर्तबन्धु साहू ने विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि कार्यस्थल आदि पर विविध स्वरूपों में लैंगिक उत्पीड़न के मामलों को अक्सर पढ़ा-सुना जाता है, आज महिलाएं हर क्षेत्र यथा-डॉक्टर, इंजीनियरिंग, सेना , पुलिस, खेलकूद, सामाजिक सरोकार से जुड़े कार्यों आदि में पुरुष के समान आगे बढ़ रही हैं और उनकी इस प्रगति को समाज सहर्ष स्वीकार कर रहा है परंतु कुछ संकीर्णता अभी भी उनकी प्रगति में बाधक बनी हुई थीं । पीड़ित व्यक्ति की जब भावनाएं आहत होती है तो एक नकारात्मक वातावरण बनता है, हमारे भारत देश ने इसी दिशा में कदम बढ़ाते हुए ‘कार्यस्थल पर महिलाओं का लैंगिक उत्पीड़न, रोकथाम, निषेध व निवारण अधिनियम 2013 ‘ पारित किया। डॉ. साहू ने महिलाओं व अपने सहयोगियों के लिए कार्यस्थल पर उपयुक्त वातावरण के निर्माण करने का आह्वान किया।

इस दौरान केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. समर कुमार घोरुई ने दिन-प्रतिदिन लैंगिक उत्पीडन को लेकर बढ़ती घटनाओं एवं इनके दुष्परिणामों को चिंताजनक बताते हुए नैतिक मूल्यों के विकास पर जोर दिया। केन्द्र के प्रशासनिक अधिकारी अखिल ठुकराल द्वारा लैंगिक उत्पीड़न के संबंध में बनाए गए भारत में लागू नीति-नियमों/प्रावधानों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी संप्रेषित की गई।

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