@devchhangani
आकाश में स्थित ग्रह-नक्षत्रों का प्रभाव धरती के वातावरण, प्राणियों, वनस्पतियों और ऋ तु परिवर्तनों पर पड़ता है। प्राचीनकाल के ऋषि-मुनियों ने इस संबंध में अधिक खोज करने का निश्चय किया। तारों, नक्षत्रों और ब्रह्मांड को जानने के लिए भारत में वेधशालाओं के निर्माण शुरू हुआ। वेधशाला में बने शंकु, धूप घड़ी, रेत घड़ी, घटी यंत्र यंत्रों से जहां समय निर्धारण किया जाता था, वहीं इससे सूर्य और चंद्र की गति पर नजर भी रखी जाती थी। वर्षों के प्रयोग और प्रयासों के बाद ही भारतीय ज्योतिषियों ने पंचांग का निर्माण किया और दूर स्थित तारों की गणना की। आकाश को मुख्यत: 27 नक्षत्रों में बांटा और प्रत्येक नक्षत्र समूह को हमारी आकाशगंगा का मील का पत्थर माना। इस तरह उन्होंने पूरे ब्रह्मांड की गति और स्थिति का पता ही नहीं लगाया, बल्कि यह भी बताया कि किस ग्रह या पिंड की उम्र क्या है और वह कब तक रहेगा। बताया जाता है कि भारत में उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर, कोणार्क का सूर्य मंदिर, काशी का विश्वनाथ मंदिर, गुजरात का सोमनाथ मंदिर, दिल्ली का ध्रुव स्तंभ सभी प्राचीन वैधशालाएं ही थीं।
विश्व धरोहर में शामिल जयपुर का जंतर-मंतर
जयपुर के शासकों ने इस विषय में विशेष रुचि ली। उन्होंने ऐसी वेधशालाओं का निर्माण कराया, जिन्हें आज जंतर-मंतर कहा जाता है। जंतर-मंतर, यंत्र-मंत्र का अपभ्रंश रूप है। इसे प्राचीन भारत में वेधशाला कहा जाता था। इसे अंग्रेजी में ऑब्जर्वेटरी कहते है। दिल्ली के कनॉट प्लेस में स्थित स्थापत्य कला का अद्वितीय नमूना जंतर-मंतर दिल्ली के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। यहां 13 खगोलीय यंत्र हैं।
दूसरा जंतर-मंतर उज्जैन में है। यहां दिगंश यंत्र, भित्ति यंत्र एवं शंकु यंत्र लगे हैं। वाराणसी की वेधशाला में 6 प्रधान यंत्र बनाए गए हैं। जयपुर के जंतर-मंतर को देश की सबसे बड़ी वेधशाला कहा जाता है। यूनेस्को ने 1 अगस्त 2010 को इस जंतर-मंतर को विश्व धरोहर सूची में शामिल किया।