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बीकानेर, 30 सितम्बर। जैन मुनि पुष्पेन्द्र म. सा. व श्रृतानंद म.सा के चार्तुमास विहार पर चल रहे धार्मिक आयोजन के तहत आज शत्रुंजय भाव यात्रा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर पौषधशाला को विशेष सुस्सज्ति किया गया तथा प्रथम तीर्थंकर की मूरत तथा श्री संघ की स्थापना की गई। आत्मानंद जैन सभा चातुर्मास समिति के सुरेंद्र बद्धाणी, शांति लाल सेठिया, शांति लाल कोचर, कोलकाता के मानकचंद सेठिया, देवेंद्र कोचर, अजय बैद के साथ जयपुर से आए गरुभक्त परिवार ओसवाल ग्रुप के देवेन्द्र जैन, हर्ष जैन संजय जैन व मोनिका जैन द्वारा दीप प्रज्वलन किया गया। इसके साथ ही महेन्द्र कोचर द्वारा संगीतमयी भजन संघवीर जी थारी माया से पुण्य कमाओ नी भजन से सभी का स्वागत किया इस पर संघवीरों द्वारा आदिनाथ भगवान के समक्ष सामूहिक नृत्य किया। तदोपरांत उपस्थित सभी श्रावक श्राविकाओं ने मिलकर आदिनाथजी के समक्ष प्रार्थना और गुरु वंदन किया। ओम नमो अरिहंताणम मंत्र वाचन करते हुवे आगे बढ़े फिर एक ओर ‘तुम कृपा करो दाता, मैं संघ निकालूंगा, इतिहास बना दूंगा, मैं भाई भतीजों संग, शीश नवा दूंगा, बहन बेटियों के गहने बना दूंगा . . .।

संगीतमयी धारा को अल्प विराम देते हुए मुनि श्रृतानंद म.सा. ने कल्याणक भूमि शत्रुंजय की महिमा बताई और भक्तों को कहा कि सभी साधर्मिकों को इस भूमि के बारे में तथ्य पता चलना चाहिए इसका ऐसा गुणगान करे की पैदल यात्रा का संघ सिद्धगिरी यही बैठा भाव से यात्रा करता रहे। श्रृतानंद म.सा. के सान्निध्य मे दो मिनट शांत रहकर मानसिक रूप से सभी प्राणियों की मंगल कामना के साथ उपस्थित सभी श्रावक श्रााविकाऐं भावनात्मक रूप से पौषधशाला से निकलकर रेल्वे स्टेशन पहुंचे, ट्रेन में बैठे, गुजरात के भावनगर पहुंचे और फिर वहां से पालिताना में जैनाचार्य श्री नित्यानदं जी का दर्शन कर आगे तलहटी पहुंचे। यहां से आगे पहाड़ी तीर्थ है जहां पर 400 से ज्यादा जिनालय है और अब आगे 3364 सीढ़ीया पैदल यात्री के रूप में चढ़ाई शुरू हुई । मार्ग दर्शक के रूप गुरु महाराज ने स्थान विशेष सन्दर्भो की जानकारी देते हुए महाराज ने फरमाया कि यहां पर 18 अहोक्षिणी का युद्ध हुआ जिसमे हजारों निर्दोष लोग मारे गये थे। कुन्ती के आदेश पर पांडव इसके लिए प्रायश्चित करने के लिए यहां शत्रुंजय पंहुचे थे। इस तीर्थ की महिमा अपरम्पार है, सिद्धगीरी चलिए जहां आदिनाथ भगवान है, के गीत के साथ आगे बढ़ते हुए धर्मश्री की टूंक, धोली की पलक, ऋषभदेव की प्रथम पीढ़ी के चक्रवर्ती भरत महाराजा ने करवाया था का मंदिर दर्शन कर गुरू की आज्ञा पर थोड़ी देर मानसिक विश्राम लिया गया और इसके साथ ही संघ परिवार मे शामिल श्राविकाओं द्वारा गिरनार देव नमीनाथ के मूरत के समक्ष संगीत पर गरबा नृत्य किया गया। पुनः यात्रा शुरू करते हुए इच्छकुंड, उमरकुंड, हिंगलाज का हाड़ा, महावीर प्रभु के पगलिए का दर्शन कर आगे बढ़े।

नामी विनामीजी के जिनालय, फिर हनुमान जी की चैकी के बाद शत्रुंजय नदी दिखाई देने शुरू हो जाती है। वहां से छोटे छोटे पर्वत के बीच आदिनाथ का जिनालय भी स्पष्ट दिखने लगता है। वहां से पैदल चलते हुवे आदिनाथ का दर्शन कर चैत्य वंदन किया, और पुन भावनगर पहुंचकर बीकानेर की ट्रेन पकड़ कर गौड़ी पाश्र्वनाथ मंदिर पहुंचे जहां पर समिति द्वारा साधर्मिक स्वामी वात्सल्य मे हिस्सा लिया।

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