पहले के चुनावों में आम सभाएं आयोजित करने के लिए स्थान तय होते थे। कांग्रेस तथा अन्य विरोधी पार्टियों के लिए उनके माहौल के अनुसार ही प्रत्याशी तथा उनके समर्थक स्थान का फैसला करते थे। आमतौर पर जिस क्षेत्र में जिस किसी पार्टी के कार्यकर्ता अधिक रहते थे या फिर स्थान बड़ा होता था, उस स्थान को आम सभा के लिए महत्वपूर्ण माना जाता था। वर्तमान की तरह न तो मोबाइल थे और न ही सोशल मीडिया के सहारे चुनावी माहौल बनता था। आमसभाएं ही प्रत्याशी की हार-जीत का फैसला कर देती थी।
बात 60 और 70 के दशक की करें तो सोशलिस्ट प्रजातांत्रिक पार्टी के प्रत्याशी मुरलीधर व्यास की सभाएं आमतौर पर दांती बाजार में ही होती थी। दिनभर तो बाजार में दुकानें खुली रहती थी लेकिन, शाम आठ बजे बाद बाजार बंद होने पर सभाओं के लिए मंच बनने शुरू हो जाते थे। दरिया बिछाने में कार्यकर्ता जुट जाते थे। चुनावी सभाओं में ही एक-दूसरे प्रत्याशी के बीच आरोप-प्रत्यारोप के दौर शुरू हो जाते थे। व्यास ने जितने भी चुनाव लड़े, पहली चुनावी सभा दांती बाजार में ही की। यहां पर कांग्रेस प्रत्याशी की सभाएं कम की जाती थी। कांग्रेस प्रत्याशी को भी यह मालूम रहता था कि यह क्षेत्र आमतौर पर विरोधी प्रत्याशी के पक्ष का है।
सामने कांग्रेस प्रत्याशी गोकुलप्रसाद पुरोहित की मुख्य सभा के लिए मोहता चौक तय होता था। इस चौक में भी दिनभर भीड़ रहती और रात 8 बजे सभा शुरू होने के समय दुकानें बंद हो जाती थी। हालांकि इस चौक में कभी कभार अन्य पार्टियों के प्रत्याशियों ने भी सभा की। परन्तु सभा के बीच में व्यवधान उत्पन्न होने का भय सताता रहता था।
आज भी चुनावी चौपाल में बुजुर्ग चुनावी सभा का जिक्र आते ही दांती बाजार और मोहता चौक के किस्से जरूर सुनाते है। बीकानेर में चुनावी सभा के लिए भुजिया बाजार तथा रांगड़ी चौक का भी नाम प्रमुखता में रहता रहा है। इन स्थानों पर दोनों पार्टियों की चुनावी सभाएं होती थी। जब 1980 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने ओम आचार्य को प्रत्याशी बनाया तो उनकी भी पहली सभा दांती बाजार में रखी गई। चूंकि सभाएं रात 12 बजे तक चलती रहती थी और एक-दूसरे प्रत्याशी पर आरोप-प्रत्यारोप खूब लगते थे। ऐसे में विरोधी पार्टी के समर्थकों से टकराव का खतरा रहता था। यही वजह है कि जिस पार्टी का जोर जिस जगह ज्यादा रहता, सभा वहां ही कराई जाती। अब शहर में इन स्थानों पर चुनावी सभाएं होना बंद हो गई है। लेकिन इन स्थानों पर चुनावी सभाओं में जो रंग जमता था वह आज भी लोग याद करते है।