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श्रीराजेन्द्रदास देवाचार्यजी महाराज ने कहा कि संतत्व और भक्तत्व जीवन में रहना जरूरी है। यदि जीवन में साधुता आ जाए तो कोई समस्या ही नहीं रहती। महाराजश्री ने कहा कि जागृति आकस्मिक नहीं नित्य होनी चाहिए, नित्य जागृत रहना चाहिए। भक्तमाल ग्रंथ के बारे में बताया कि भक्तमाल ग्रंथ भक्तिकाल के सोलहवीं सदी का सनातन वैष्णव धर्म का एक अनुपम ग्रंथ है। इस काल में दो महान ग्रंथ श्रीराम चरित मानस व भक्तमाल हुए जो युगों तक लोगों को सद्मार्ग के लिए प्रेरित करते हुए आए हैं और करते रहेंगे।
श्रीराजेन्द्रदास देवाचार्यजी महाराज ने कहा कि एक अंग के तिरस्कार से पूरे अंगी का तिरस्कार है। भगवान से बाहर कुछ नहीं सब कुछ भगवान में है और सब कुछ भगवान ही है। इसलिए किसी भी प्राणी का तिरस्कार भगवान का तिरस्कार है। परमात्मा सब में है, जो भगवान का भक्त है वो किसी का भी तिरस्कार नहीं करता। कथा शुरुआत में तुलसीदासजी के भक्तमाल ग्रन्थ के सुमेरु होने की कथा तथा नाभाजी के बारे में जानकारी प्रदान की गई।
आयोजन समिति के घनश्याम रामावत ने बताया कि सप्तदिवसीय कथा का आयोजन दोपहर 3 से सायं 7 बजे तक भीनासर स्थित श्रीमुरलीमोहर मैदान में किया जा रहा है। आज कथा में पूर्व मंत्री डॉ. बीडी कल्ला, बालकिशन राठी व गौरीशंकर सारड़ा का आतिथ्य रहा। कथा आयोजन में गजानंद रामावत शिव गहलोत, श्रवण सोनी, नरसिंहदास मीमाणी, भंवरलाल साध, इंद्रमोहन रामावत, संदीप भाटी, महादेव रामावत, ओमप्रकाश स्वामी, चंद्रकांत दीपावत, गणपत उपाध्याय, श्रवण सोनी, अमोलक, झूमरमल, रामसुख आदि ने व्यवस्थाएं संभाली।