ये मारा…वो लगा…छपाक, सटाक…की करतल ध्वनि के साथ एक दूसरे की पीठ पर पानी से भरी डोलची का वार। पानी की मार से पीठ हुई लाल। थी तो यह लड़ाई। इसमें वार भी हुआ। तो मार से पीठ लाल भी हुई।चौंकिएगा नहीं, यह दृश्य आज हर्षों के चौक में साकार हो रहा था। अवसर था पुष्करणा समाज की हर्ष-व्यास जाति के बीच होली के मौके पर खेले जाने वाले पानी की डोलची मार खेल का। रियासकाल से चली आ रही परम्परा का आज भी समाज के गणमान्य लोगों की मौजूदगी में निर्वाह किया गया। हर्षो की ढलान पर होने वाले इस खेल में पानी के लिए बड़े-बड़े कड़ाव रखें गए। एक जाति के लोग एक तरफ तो दूसरी जाति के लोग ढलान के ऊपर की तरफ खड़े हुए। फिर विशेष सामग्री से तैयार की गई डोलची में पानी भर-भरकर एक दूसरे की पीठ पर ऐसे वार किया गया। पहली बार इस खेल को देखने वाले तो अचंभित ही रह गए, उन्हें लगा क्या यह वास्तव में पानी की मार मार रहे हैं, मगर असल में यह खेल दोनों जातियों में प्रेमचारे का प्रतीक है।
उसी कड़ी में आज भी होली के मौके पर यह हर्ष-व्यास जाति में पानी का खेल होता है। इसमें समाज की अन्य जातियां भी प्रेम पूर्वक हिस्सा लेती है। दोपहर में शुरू हुआ पानी का खेल शाम करीब चार बजे तक चला। अंत में गुलाल उड़ाकर खेल की विधवत रूप से समाप्त की गई।
देखने के लिए उमड़ा शहर…
हर्ष-व्यास जाति में होने वाले इस पानी के खेल को देखने के लिए पूरा शहर ही उमड़ता है। हर्षों के चौक में घरों की छत्तों से महिलाएं भी इस खेल का लुत्फ उठाती है।