बीकानेर, 5 अक्टूबर। जिनशासन के अंतर्गत सास्वत त्यौंहार ओलीजी निकट है। आसोज सुदी सष्टमी बुधवार, 9 अक्टूबर से नौ दिवसीय परम आध्यात्मिक पर्व ओलिजी शुरू होगा। इसमें पांच परमेष्ठि अरिहंत, सिद्ध, साधु, आचार्य और भगवान के साथ धर्म के चार फलरूप दर्शन, ज्ञान, चारित्य और तप की आराधना की जायेगी। इस दौरान एक वक्त निराहार रहकर, तथा एक समय में निषेध और अभक्षीय आहार न लेकर केवल सादे भोजन करने की कठोरतम पालना से आयंबिल करते हुवे पांच परमेष्ठि की भक्ति करेंगे। इस अवसर पर श्रीपाल और मैना का सुंदर रास का वाचन गुरुमुख से होगा एवं एक एक पद के विश्लेषण से अरिहंत, सिद्ध, साधु, आचार्य, और परमेश्वर की महिमा सुनाई जायेगी। महाराज साहब द्वारा जिनशासन के अनुयायियों से अधिक से अधिक ओलीजी आयंबिल करने के लिए प्रेरित किया गया। यह प्रवचन आज चातुर्मास विहार पर आए गच्छाधिपति नित्यानंद सुरीश्वरजी के शिष्यरत्न मुनि पुष्पेन्द्र म सा व मुनि श्रुतानंद म सा ने आज रांगड़ी चैक स्थित पौषधशाला में आज मिथ्या कषाय पर अपना प्रवचन दिया। गुरु म सा ने फरमाते हुए कहा कि हमे किसी क्रिया का फल दिखाई देती है, लेकिन उसके पीछे की मेहनत नही। शालीभद्र जीका नावनुपेटी दिखाई देती है लेकिन उनका तप। हमे किसी का वैभव नही देखना चाहिए, उसकी मेहनत देखनी होती हे, अगर मोक्ष को अलावा सांसारिक फल भी चाहते तो सात्विक बुद्धि देखनी होती है। इसका उदाहरण देते हुए , कोई धनाढ्य का स्वागत होता है तो लोग सोचते हैं की पैसेवाले ही इसलिए उसको मान दिया जा रहा है यह प्रथम दृष्टि है लेकिन उन्ही में से एक अलग सोच का व्यक्ति होता है जो यह सोचता है की यही धार्मिक मैं कैसे करवाऊं, उसके लिए वो मेहनत करता हे, आगे बढ़ता है, सात्विक बुद्धि रखता है, तो एक दिन वो आ जाता है जब उसको वो मंजिल मिल जाती है। तो आपकी दृष्टि आपको सांसारिक प्रयासों में सफल कर देती है।
मुनि श्रुतानंद ने कहा की सांसारिक यात्रा में चलते हुवे ही हमे ऐसी सकारात्मक सोच के साथ धीरे पुण्य का बंध मिलता है, कभी ऐसी परीक्षा भी देनी जो आपके मोक्ष की गति मिल जाती है। सज्जन व्यक्तित्व के लिए निशस्त्र होना सर्वोत्तम है, लेकिन अप्रिय स्थिति से बचने के लिए ढाल रखना गलत नही है। स्पर्धा के गर्भ मे ईर्ष्या का जन्म होता है और ईर्ष्या आती है तो अन्य दोषों का जन्म हो जाता है और फिर धीरे धीरे आदमी उस ईर्ष्या की आग मे खुद ही जलने लग जाता है। इसलिए ईर्ष्या से खुद को दूर करो। अपने मन को प्रतिस्पर्धा से मुक्त करो। और जब दिल से इससे मुक्त हो जाओगे तो कुदरत का भी कमाल हो जाता है। आपका काम स्वयं सिद्ध होने लगता है, चेहरे पर तेज झलकने लग जाता है। यह प्रवचन देते हुए प्रखर प्रवचनकार मुनि श्रुतानंद महाराज साहेब ने कर्म बंध के भेद बताते हुए कहा कि पाॅच प्रकार की होती है मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग। प्रखर प्रवचनकार मुनि श्रुतानंद महाराज साहेब ने बताया कि स्तिथिशील ताकत, गतिशील ताकत पर भी अपना प्रवचन देते हुए कहा कि पुण्य कर्म की ताकत गतिशील है, धर्म की ताकत स्तिथिशील है। जैसे एक 25 मंजिला इमारत का ऊपरी हिस्सा गतिशील ताकत के रूप में समझ सकते है, लेकिन उसकी नींव जितनी गहरी है यह उसकी स्तिथिशील ताकत है। उन्होने भगवान राम के वनवास यात्रा पर पुन लौटने पर जब सबसे पहले माता कैकेयी के पैर छुए तो कौशल्य के विस्मय का जवाब देते हुए कहा कि इस वनवास से मुझे मेरे जीवन मे यह पता चला कि मुझे अपने पिता का प्रेम, लक्ष्मण का भ्रातृत्व प्रेम, भरत से अहोभाग्य, सीता की पवित्रता, हनुमान जैसा मित्र और भक्त, विभीषण जैसे सज्जन की मिलन और मुझमे कितनी ताकत है का पता चला।
आत्मानंद जैन सभा चातुर्मास समिति के सुरेन्द्र बद्धानी ने बताया कि सोमवार को दोपहर तीन बजे पौषधशाला मे मातृ शक्ति की भक्ति में गरबारास होगा जिसमे बालिकाओं और महिलाओं का ही प्रवेश होगा। शनिवार 13 अक्टूबर को नरक के रास्तों मे जाने के रास्तों का नाट्य मंचन होगा जिसमे गुरु के सान्निध्य मे श्राविकाऐं अभिनव करेंगी। जैन धर्म में ओलीजी का बड़ा महत्व है जो सास्वत पर्व है। ओलीजी के लिए आंयबिल के लिए बड़ी संख्या में श्रााविक श्राविकाओ ने अपने नाम पंजीकृत करवाए है।
प्रवचन के उपरांत बनाये गये बालिका अनुपमा बेद द्वारा लघु रूप में बनाये जैन मंदिर का मंत्रोच्चार से शुद्धिकरण कर विद्यालय मे हेतु भेजा गया।
प्रवचन के बाद आत्मानंद जैन सभा चातुर्मास समिति के सुरेन्द्र बद्धानी ने बताया कि इसमे बड़ी संख्या में श्रावक श्रााविकाऐं आयंबिल करने के लिए अपना नाम लिखवा चुकी है व 8 अक्टूबर तक अपना नाम लिखवाया जा सकता है।