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दीपोत्सव पर लक्ष्मी पूजन का विधान सदियों से है। इस बीच कई परंपराए हर शहर में वहां की संस्कृति आ समाज के हिसाब से विकसित हो
जाती है। होली पर रम्मतों के लिए प्रसिद्ध बारह गुवाड़ चौक भी अपने आप में एक ऐसा स्थान है जो हर पर्व पर संस्कृति को बचाने के लिए वर्षों से आयोजन करता रहा है।दीपावली की रात यहां पर पिछले दो सौ साल से शारीरिक दक्षता दिखाने के लिए बनाटी घुमाने का कार्यक्रम होता है। सिर के ऊपर आर पैरों केनीचे से आठ से 12 किलो वजनी दोनों तरफ जलती मशाल के साथ।बंधी लकड़ी को घुमाना आम आदमी के वश की बात नहीं है इसके लिए प्रशिक्षित उस्ताद के नेतृत्वमें कड़ा अभ्यास करवाया जाता है। इस बार भी रविवार को बारह गुवाड़ चौक में रात नौ बजे बनाटी घुमाने का
कार्यक्रम होगा। इसकी तैयारियां शुरू।हो चुकी है। बनाटी के वर्तमान उस्तादईसर महाराज आर शेर महाराज है।।ईसर महाराज बताते हैं कि बनाटी बनाना भी अपने आप में एक कला है। लकड़ी के दोनों तरफ सूत के कोड़े
बनाकर उसे जले हुए डीजल तेल में दो दिन तक हम भिगोते हैं। दोनों तरफ संतुलन बना रहे इसके लिए हर कोडे का वजन आर आकार एक जैसा रखते हैं। पहले यह काम जूट
से होता था अब डीजल का जला तेल इसलिए लेते हैं कि वह गाढ़ा होता है और लंबे समय तक मशाल जलतीरहती है। यह शारीरिक दक्षता दिखाने का पारंपरिक खेल है। वैसे तो बहुत।सी जगहों पर लोग आग को लेकर
विभिन्न करतब दिखाते हैं मगर तेज अग्नि औऱ वजन के साथ इसमें गति को शामिल करते हुए करतब दिखाना, हमारे यहां ही होता है। एक चूक से बड़ा नुकसान हो सकता है
मगर मां लक्ष्मी आर भैरूंनाथ की कृपा से आज तक ऐसा नहीं हुआ। इसमें बच्चे बुजुर्ग युवा सभी भाग लेते है और आसपास के मोहल्ले के लोग तेज़ आवाज में नारे लगाकर उनमे जोश भर देते है।

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