Mon. Jul 14th, 2025

11 साल के एक बालक को कुत्ते ने काट लिया। माता-पिता ने एंटी रेबीज इंजेक्शन भी लगवा दिया। लेकिन, बेटा उन्हें देखने ही भौंकने लगता। उसके लेटने-बैठने का अंदाज तक बदल गया। वह माता-पिता को कुत्ते की तरह चाटता, खाना-पानी देने पर दुम हिलाने की कोशिश करता। परेशान पिता उसे कॉल्विन हॉस्पिटल ले गए तो पता चला कि वह लाइकेंथ्रोपी नाम की बीमारी से पीड़ित है। फिलहाल मनोवैज्ञानिक कक्ष में उसका इलाज चल रहा है। 

दरअसल, प्रयागराज के मेजा तहसील के कोहड़ार निवासी इस 11 वर्षीय बच्चे को पिछले साल गांव के ही एक कुत्ते ने काट लिया। परिजनों ने तुरंत ही एंटी रेबीज इंजेक्शन लगवा दिया। सभी डोज लगने के कुछ हफ्ते बाद बेटे ने रात में परिजनों और बाहरी लोगों को देखकर भौंकना शुरू कर दिया। परिजनों के मुताबिक, कुत्ते की तरह व्यवहार देखकर शुरू में तो डांट-फटकार कर समझाने की कोशिश की। लेकिन, व्यवहार में कोई सुधार न होने पर उसे मोती लाल नेहरू मंडलीय चिकित्सालय (कॉल्विन) में दिखाने पहुंचे। डॉक्टरों ने जांच में पाया कि बालक पूरी तरह से स्वस्थ है। ऐसे में उसे यहां के मनोवैज्ञानिक कक्ष भेज दिया गया।

यहां मनोचिकित्सक की जांच में पता चला कि वह लाइकेंथ्रोपी या लाइकोमेनिया का शिकार हो गया है। यह बीमारी लाखों में किसी एक को होती है। इसमें व्यक्ति जैसा सोचता है, वैसा ही व्यवहार करने लगता है। डॉक्टरों की काउंसलिंग के दौरान बालक ने बताया कि वह खुद को कुत्ता समझता है। उसे लगता है कि जब से कुत्ते ने काटा है, वह इंसान नहीं रहा। चिकित्सकों ने उसका इलाज शुरू कर दिया है।

कॉल्विन हॉस्पिटल के मनोवैज्ञानिक कक्ष में इस प्रकार का यह दूसरा मामला आया है। डॉक्टर ने बताया कि एक साल पहले यहां कोरांव तहसील के एक 16 वर्षीय छात्र को उसके माता-पिता लेकर आए थे। वह हॉरर फिल्में देखते-देखते खुद को भेड़िया समझने लगा था। रात में वह भेड़िये की तरह आवाज भी निकालने लगा। इस दौरान उसने गांव की कुछ बकरियाें को भेड़िये की तरह हमला करके काट भी डाला। सात महीने चले इलाज के बाद अब वह स्वस्थ है।

डॉक्टर्स के अनुसार इन कदमों से मिली इलाज में मदद

– तेल-मसाला वाली चीजें खाने पर रही रोक।

– नींद पूरी लेने की डॉक्टरों ने दी थी सलाह।

– सुबह उठकर योग और ध्यान लगाया।

– हॉरर मूवी की काल्पनिक दुनिया से दूर रखा।

क्या है लाइकेंथ्रोपी

डॉक्टर्स के अनुसार यह एक दुर्लभ सिंड्रोम है, जो विश्वास दिलाता है कि जो वह सोच रहा है, वही असल में हो रहा है। ज्यादा सोचने के कारण पीड़ित उसी तरह हरकतें करने लगता है। इसे क्लीनिकल लाइकेंथ्रोपी या लाइकोमेनिया कहा जाता है।

मेरे सामने इस प्रकार के अब तक दो मामले आए हैं, जिनमें दोनों बच्चे पूरी तरह से जानवर की तरह बर्ताव कर रहे थे। इस प्रकार की बीमारी से ग्रसित व्यक्ति के ठीक होने में थोड़ा समय लगता है। –डॉ. राकेश पासवान, मनोचिकित्सक, कॉल्विन अस्पताल

क्लीनिकल लाइकेंथ्रोपी न्यूरो साइकियाट्रिक विकारों, सांस्कृतिक, सामाजिक कारकों और शारीरिक मुद्दों के कारण प्रभावित हो सकती है। इसके होने के अलग-अलग कारण होते हैं। –डॉ. अभिनव टंडन, मनोचिकित्सक, एसआरएन हॉस्पिटल

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *