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बीकानेर. जीयो और जीने दो की शांतिप्रिय नीति में विश्वास रखने वाले बीकानेर शहर को भी एक समय राजनीतिक उठापटक ने ऐसा जकड़ लिया था कि वह हो गया, जैसा किसी ने सोचा भी नहीं था। कम से कम बीकानेर संभाग की राजनीति की समझ रखने वालों के लिए तो यह कुछ ऐसा था, जो अनहोनी की श्रेणी में ही आरहा था। बात हो रही है 1998 में हुए विधानसभा चुनाव की। मौजूदा विधायक और मंत्री डॉ. कल्ला उस समय भी कांग्रेस टिकट के मजबूत दावेदार थे। उसी दौरान कांग्रेस की वरिष्ठ नेता कुमारी शैलजा विधानसभा चुनावों के टिकट को लेकर बीकानेर प्रभारी बन कर आईं। सर्किट हाउस में शैलजा ने कांग्रेस के सभी नेताओं एवं कार्यकर्ताओं से टिकट को लेकर बातचीत की।

उस समय सर्किट हाउस में भारी भीड़ जमा हो गई, जो धीरे-धीरे काबू से बाहर हो गई। हालात सर्किट हाउस में तोड़फोड़ तक पहुंच गए। बीच-बचाव के लिए पुलिस मौके पर पहुंची। इससे बीकानेर में राजनीतिक माहौल गर्मा गया। शैलजा के साथ भी धक्का-मुक्की हुई। उनके साथ हुए व्यवहार की शिकायत केन्द्रीय नेतृत्व तक पहुंच गई थी। शिकायत को गंभीर मानते हुए तत्कालीन आलाकमान के निर्देश पर डॉ. कल्ला को निलंबित कर दिया गया। वे निलंबन काल में ही थे कि इधर चुनावों के दिन नजदीक आ गए। अब कांग्रेस के सामने दूसरी तरह का संकट खड़ा था। दरअसल, बीकानेर शहर विधानसभा क्षेत्र से किसे प्रत्याशी बनाया जाए, यह सवाल उनके सामने सुरसा जैसा मुंह बाए खड़ा था। पर्यवेक्षकों को भी तमाम कोशिशों के बावजूद कोई जिताऊ उम्मीदवार नजर नहीं आ रहा था।

यहां पर पुराना इतिहास भी कांग्रेस को चिंतित किए हुए था। क्योंकि 1993 में हुए चुनाव में कांग्रेस पहली बार भाजपा से हार गई थी। लिहाजा, इस सीट को फिर से कब्जाना पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका है। काफी सोच-विचार के बाद आखिरकार पार्टी ने डॉ. कल्ला का निलंबन बहाल कर दिया।

साथ ही, उन्हें विधानसभा चुनाव 1998 में कांग्रेस का प्रत्याशी भी घोषित कर दिया। चुनाव में कांग्रेस से डॉ. बीडी कल्ला, भाजपा से डॉ. सत्यप्रकाश आचार्य मैदान में थे। भाजपा के बागी प्रत्याशी के रूप में पूर्व विधायक नन्दलाल व्यास तथा कांग्रेस नेता गुलाम मुस्तफा ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा। चुनावी माहौल काफी रोचक हो चुका था। बहरहाल, डॉ. कल्ला ने 1993 में भाजपा से मिली हार का बदला लेकर 1998 का चुनाव जीता और विधानसभा पहुंच गए। जबकि नन्दलाल व्यास दूसरे और सत्यप्रकाश आचार्य तीसरे स्थान पर रहे।

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